उत्तराखंड– कमला देवी, नेहा ककड़ और सिंगर दिग्विजय ने कुमांउनी गीत सोनचड़ी गाया है। बागेश्वर की रहने वाली कमला देवी ने राजुला मालुशाली गाना अपने पिता से सीखा था। तभी से कमला देवी ने पहाड़ की इस कहानी की धुन को अपने कंठ में संजो लिया। कमला देवी सिर्फ कुमाऊंनी संस्कृति से जुड़े लोक गीत गाती हैं।
15 साल की उम्र से ही कमला देवी कुमाऊंनी लोक संगीत की विधाओं में पारंगत हो गई थी। धीरे-धीरे कमला देवी ने उत्तराखंड के विभिन्न मंचों पर अपने सुरों का जादू बिखेरना शुरु किया और आज वो एक इंटरनेशनल मंच से उत्तराखंड की एक फेमस प्रेम कहानी को देश और दुनिया को सुना रही हैं।
जब से कोक स्टूडियो ने कमला देवी को अपने सिजन में लेने की बात की थी तभी से कमला देवी को बधाई देने वालों का तांता लग गया था। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी टविट कर कमला देवी को बधाई दी है। बता दें कि कोक स्टूडियो टीवी पर चलने वाला एक लाइव म्यूज़िक शो है जो दुनिया भर के ऐसे उभरते कलाकारों को मंच देता है जो अपनी संस्कृति को अपनी सुरीली आवाज में संजो रहे हैं। ये दुनियाभर में सराहा जाने वाला एक मंच है जो हमेशा से लोक संगीत को प्रोत्साहित करता आ रहा है।
कोक स्टूडियो की सबसे बड़ी खासियत यही है की यहां संगीत की अलग-अलग विधाओं से जुड़े गायक मंच पर एक साथ गाते हैं और बिना किसी काट छांट के इसकी फाइनल रिकॉर्डिंग को सिधा प्रसारित किया जाता है। आपको ये जानकर गर्व होगा की कमला देवी उत्तराखंड की पहली लोक गायिका हैं जिन्हें कोक स्टूडियो जैसे इंटरनेशनल पलेटफोम में गाने का अवसर मिला।
कमला देवी ने इस गाने में राजुला और मालू का जिक्र किया है। ऐसे में आपको बता दें कि राजुला और मालू पहाड़ का एक प्रेमी जोड़ा था। मालू राजा का बेटा था और राजुला भोट की शौक्याणी (भोटिया समाज की बेटी)। इनकी शादी बचपन में ही कर दी गई थी। लेकिन बड़े होने के बाद मालू की मां उनके मिलने में काफी अड़चनें पैदा करती है।
यहां राजुला के घर वाले सोचते हैं की मालू के पिता उनसे किया वादा भूल गए हैं और वो राजूला की शादी कहीं और कर देते हैं। अब राजुला से अलग रहकर मालू नहीं रह पाया। वो सारा राजपाठ छोड़कर राजुला के लिए सन्यासी बन जाता है। गुरु गोरखनाथ की मदद से वो राजुला को पा ही लेता है।