अपनी एक एक गलती पर रो रहे है पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत|

आजकल पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अपनी एक एक गलती को स्वीकार कर रहे है। दुख व्यक्त कर रहे हैं कि उन्होंने कुछ गलतियां की है। फिर भी वे बढती उम्र के बावजूद भी लगातार राज्य के मुद्दो पर सक्रीय दिखाई देते है। यहां हम उनके एक माफीनामा को हूबहू पढ रहे है। उन्होंने अपनी सोशल साईट पर ऐसा भावनात्मक आलेख लिखा है जिससे हर कोई भाव विभोर हो रहा है।

वे लिख रहे हैं कि क्षमाउत्तराखंड ! माल्टे के प्रचार के चक्कर में वे कुछ भावुक हो गये। माल्टे उनके पास गैरसैंण से आए थे। गैरसैंण को लेकर उन्होंने खुद भी कुछ सपने देखें और राज्य को भी दिखाए थे। वे आगे लिख रहे हैं कि अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में गैरसैण में शानदार विधानसभा भवन बना, विधायक निवास बना, सचिवालय बनाने के लिए निर्माण एजेंसी तय की। लगभग 50 करोड़ रुपये स्वीकृत भी किये, 500 भवनों के निर्माण के लिए स्थान का चयन किया, हेलीपैड, सड़क, विद्युतीकरण, पानी की व्यवस्था के साथ-साथ गैरसैंण अवस्थापना का गठन कर 8 ऐसी सड़कें जिनसे गैरसैंण शेष उत्तराखंड से और बेहतर तरीके से जुड़ सकें उसका गठन किया।

और भी दर्जनों ऐसे उपाय किये जिसमें गैरसैंण-चौखुटिया विकास परिषद का गठन तथा भराड़ीसैंण टाउनशिप के विकास के लिए यू हुड्डा नामक संस्था का गठन किया। पर अब स्वीकार भी कर रहे हैं कि वे राजनीति करने में चूक गये। यदि उन्होंने भाजपा के तरीके से हवाई राजधानी घोषित कर दी होती तो भाजपा के ट्रॉलर्स को जुम्मे की नमाज, मुस्लिम यूनिवर्सिटी, छठ की छुट्टी आदि याद नहीं आ रही होती।

वे आज भी अपनी प्रतिद्वन्दी पार्टी भाजपा को नहीं छोड रहे है। वे आगे लिख् रहे हैं कि भाजपा की 2017 की सरकार और 2022 की सरकार का जन्म जुम्मे की नमाज और मुस्लिम यूनिवर्सिटी के झूठ के गर्भ से हुआ। इसलिये आज सारा उत्तराखंड भटका-भटका सा है, शराब और बजरी माफिया के चंगुल में है और पलायन व आर्थिक असंतुलन का भयंकर विष का राज्य झेल रहा है। वे चुटकी लेकर लिख रहे हैं कि उनसे भाजपाई इस बुढ़ापे में भी बहुत डरी हुई है। वे आज भी चुनौती दे रहे हैं कि जुम्मे की छुट्टी का वह आदेश जिसके माध्यम से आपके स्कूल, अस्पताल और सरकारी कार्यालयों में छुट्टी हुई हो उसे दिखा दें। तथा उन्होंने मुस्लिम यूनिवर्सिटी का वादा किया है, उसकी किसी मान्यता प्राप्त समाचार पत्र की कटिंग या चैनल में उनक बयान दिखा दें तो वे आज भी माफी मांग सकते है। वे बार बार लिख रहे हैं कि यदि यह दिखा दिया तो वे राजनीति छोड देंगे। और तब भाजपा के किराए के ट्रॉलर्स का काम हल्का हो जाएगा।

वे दुखी है कि निरंतर गैरसैंण, गैरसैंणियत, उत्तराखंड और उत्तराखंडियत के अपमान के साथ-साथ राज्य में पलायन, कुव्यवस्था, भ्रष्टाचार और लूट पाट का बोल बाला है और बेरोजगारी चरम पर है तथा नशे की लत में युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है तो कुछ भावनाएं उद्वेलित हो गई और उनके कुछ शब्द गुदगुदा गये। एकाध आंसू भी छलक गए।

क्षमा करें! घोर भाजपाइयों और उनके ट्रॉलर्स की भावना को समझते हुए भी उन्होने शायद कुछ ऐसा कह दिया जिसमें कुछ लोगों को उनसे कई-कई सवाल करने पड़े! उन्हे उत्तराखंड की लगभग 25 साल की यात्रा में लगभग 3 वर्ष मुख्यमंत्री के रूप में काम करने का सौभाग्य मिला, वह भी ऐसे समय में जब सारा राज्य आपदा से क्षत-विक्षत था, अर्थव्यवस्था चौपट हो गई थी। चारधाम यात्रा और पर्यटन ठप हो गया था। 7000 से ज्यादा लोग कालकल्वित हो गए थे, लाखों लोगों की आजीविका खंडित हो गई थी। तब भी उन्होने इस काल खंड में क्या किया इसका सही-सही मूल्यांकन किए बिना उत्तराखंड को आज के तरीके से ही भटकना पड़ेगा, शेष रहे उनके डेढ़ साल तो उन्होने धन बल और केंद्र सरकार की सत्ता बल आधारित दल-बदल झेला और राष्ट्रपति शासन झेला।

वे अपने पुराने कार्यो को भी लिख रहे हैं कि उनको जब अल्मोड़ा ने सांसद बनाया तो उन्होने निष्ठापूर्वक संसद की कारवाई में प्रत्येक दिन अल्मोड़ा व पहाड़ शब्द को अंकित करवाया। जब हरिद्वार संसदीय क्षेत्र ने उन्हे सांसद बनाया, प्रत्येक गांव में गया, हर खेत और गौशाला के लिए उन्होने बीज से लेकर पशु आहार, चिकित्सा व तकनीकी ज्ञान पहुंचाने का काम किया। तीन दर्जन बड़े ग्राम समूह में शुद्ध पेयजल धरती के गर्भ से निकालकर नल से पहुंचाया, पंचपुरी में जाकर कोई पूछ लें, दर्जनों पुल और सड़कों के साथ हरिद्वार को एक विकास मॉडल के रूप में आगे बढ़ाया, मेडिकल कॉलेज स्वीकृत करवाया, सबसे बड़ी बात तो ये है कि वे सांसद के रूप में हरिद्वार के डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों को उनके नाम या सरनेम से पुकारता था और लगभग 30-35 प्रतिशत लोगों को चेहरे से पहचानता था जिसमें थोड़े बड़े बच्चे भी सम्मिलित हैं, फिर भी यदि उत्तराखंड उनकी सेवाओं में कुछ कमी रह गई है तो वह अब उसकी भरपाई माल्टा, गन्ना, नींबू, गेठी, गुड़, काफल, सकरगंधी, बिच्छू घास आदि के साथ करते हैं। हां उन्होने माल्टा और काफल ब्रांड की शराब नहीं बिकवा पाया, शायद भाजपाई ट्रॉलर्स इसीलिए उन्हे 24 घण्टे घेरे रहते हैं।

वे अन्त में अपनी बात को लिखते है कि जब तक उनमे प्राण हैं, वे कहीं भी रहे मगर राज्य की भावना को स्वर देते रहेंगे।

 

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Author: uttarakhandtime

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