वरिष्ठ रंगकर्मी और गढ़वाल विश्वविद्यालय के लोककला एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र के प्रोफेसर डीआर पुरोहित ने कहा कि राज्य में ढोल केवल एक वाद्ययंत्र नहीं है बल्कि यह एक चमत्कारी, आध्यात्मिक और जादुई वाद्ययंत्र है ढोल उत्तराखंड का पारंपरिक वाद्ययंत्र है उत्तराखंड अपनी संस्कृति और सभ्यता के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यहां की संस्कृति न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी जानी जाती है. पहाड़ की सांस्कृतिक धरोहर में धार्मिक, सामाजिक और लोक कलाओं का समावेश है, जिसमें पहाड़ों में बजने वाला ढोल एक महत्वपूर्ण वाद्ययंत्र है. ढोल पहाड़ों की संस्कृति में इस प्रकार रचा-बसा है कि बच्चे के जन्म के समय होने वाले पहले संस्कार, जिसे अन्नप्राशन कहा जाता है, उसमें भी ढोल बजाने की परंपरा है. उत्तराखंड में मानव जीवन के 16 संस्कारों में ढोल बजाने की परंपरा है. इसके अलावा कई क्षेत्रों में अंतिम संस्कार के दौरान भी ढोल बजाने की परंपरा है, जैसे कि जौनसार-बावर और रवाई क्षेत्र में शव यात्रा के दौरान भी ढोल बजाया जाता है
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