अदालतों में अब तारीख पर तारीख नहीं चलेगी

अदालतों में तारीख पर तारीख खूब दी जाती है। कभी मुल्जिम तारीख मांगता है तो कभी अभियोजन को भी तारीख चाहिए। सालों साल इसी तरह मुकदमे अदालतों में चलते हैं। मगर, कुछ मुकदमे ऐसे भी होते हैं, जिनमें अदालत तारीख देना ही बंद कर देती है।

बता दें कि इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं कि मुकदमा बंद हो गया। मुकदमा फिर चलेगा, लेकिन पहले मुल्जिम अदालत पहुंचेगा तब यह फाइल अदालतों के दफ्तर से निकलेंगी। बीते 20 सालों में ही देहरादून जिले की विभिन्न अदालतों ने सैकड़ों मुकदमों की फाइलों को दाखिल दफ्तर कर लिया है। पुलिस को जब मुल्जिम मिलेंगे तभी ये मुकदमे भी चलेंगे।

दरअसल, मुल्जिम जब अदालत में हाजिर नहीं होता तो पहले उसके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया जाता है। इसके बाद गैर जमानती वारंट। मुल्जिम फिर भी नहीं मिलता तो उसके घर व संपत्तियों की कुर्की के आदेश होते हैं। बावजूद इसके मुल्जिम अदालत नहीं पहुंचता तो अदालत के आदेश पर संपत्तियों को कुर्क कर दिया जाता है। अब इस प्रक्रिया तक भी अगर मुल्जिम हाथ नहीं आता तो उसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी कर दिया जाता है। जब पुलिस को मुल्जिम मिलेंगे तब फिर से मुकदमों की तारीखें लगनी शुरू होंगी यानी कोर्ट की कार्यवाही शुरू हो जाएगी।

साल 2016 में विशाल चौधरी उर्फ नीरज कुमार निवासी जोहरा, थाना जानी, मेरठ पर आरोप था कि उसने अपनी छठी पत्नी के पिता की हत्या कर दी है उसने अपने ससुर इंदर को और फिर उसकी ऋषिकेश मार्ग पर हत्या कर दी। अगस्त 2016 में नेहरू कॉलोनी पुलिस ने उसे गिरफ्तार भी कर लिया। चार्जशीट कोर्ट में दाखिल हुई। इसके बाद उसे जमानत मिल गई। तब से अब तक विशाल चौधरी का कहीं पता नहीं चला ।

साल 2004 में नेहरू कॉलोनी पुलिस ने डकैती की योजना बनाते छह लोगों को पकड़ा था। इनके लिए काम करने वाले मनोज कश्यप निवासी ईस्ट पटेलनगर, देहरादून को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। मुकदमे में चार्जशीट हुई तो मनोज कश्यप को जमानत मिल गई। कश्यप का जो पता था वह मकान उसने किराये पर लिया था। स्थायी पता मालूम नहीं हुआ और अदालत वारंट पर वारंट जारी करती रही। अंत में जब वह नहीं मिला तो वर्ष 2013 में उसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी हो गया।

जिले की अदालतों ने विभिन्न थानों से संबंधित 150 से अधिक मुल्जिमों के स्थायी वारंट जारी कर उनकी फाइलों को दाखिल दफ्तर किया है। इनमें सबसे अधिक चेक बाउंस के मामले शामिल हैं। पूरे मामलों में इनकी संख्या लगभग 60 फीसदी है। इसके बाद आबकारी अधिनियम और फिर एनडीपीएस एक्ट के मामले शामिल हैं।

 

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Author: uttarakhandtime