देवभूमि उत्तराखंड आज अपनी स्थापना के 24 साल पूरे कर चुका है लेकिन आज भी राज्य की स्थायी राजधानी का सवाल ज्यों का त्यों ही बना हुआ है। पहाड़ों के डानों कानों से लेकर भाभर तराई तक हर व्यक्ति गैरसैंण को राजधानी बनते देखना चाहता है। गैरसैंण के लिए देखे गए इस सपने को साकार करने के लिए पिछले कई सालों में कमेटियां बनी, आंदोलन हुए और सरकारों ने आश्वासन भी दिए लेकिन सब का रिजल्ट शून्य ही रहा।गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की मांग राज्य बनने से भी पहले की है। तकरीबन 1960 के दशक की ये मांग तब और तेज हो गई जब उत्तराखंड एक अलग राज्य बना। हालांकि इसके बाद कई सरकारें आई और गई। हर किसी ने गैरसैंण के मुद्दे पर अपनी सियासी रोटियां भी सेंकी लेकिन आज-तक किसी ने गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के लिए एक कदम भी नहीं बढ़ाया। उत्तराखंड राज्य के गठन को 24 साल पूरे होने के बाद भी गैरसैंण के स्थायी राजधानी बनने का सपना आज भी सपना ही है।गैरसैंण का नाम सुनते ही पहली चीज जो दिमाग में आती है स्थाई राजधानी। इसी के साथ सवाल भी आता है कि क्यों उत्तराखंड के वासी गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाना चाहते हैं ? इसका जवाब आपको राज्य आंदोलनकारियों के इस नारे में पहाड़ी प्रदेश की राजधानी पहाड़ में ही मिल जाएगा। दरअसल राज्य आंदोलन के दौर से ही उत्तराखंडवासी चाहते थे की पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड की राजधानी पहाड़ों में ही हो ताकी सरकार पहाड़ चढ़कर पहाड़ों की पीड़ा को समझ पाएं और यहां का विकास हो सके। इसी तर्ज पर तो हमारा राज्य बना था।
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