उत्तराखंड का नंदा देवी मेला ना केवल प्रदेश में बल्कि देशभर में मशहूर है। मां नंदा का ये मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि ये पहाड़ों की संस्कृति, परंपरा, और आस्था का जीता-जागता उदाहरण है। बता दें कि नंदा देवी मेले के दौरान मां नंदा सुनंदा की प्रतिमाएं केले के पेड़ से बनाई जाती हैं। लेकिन आपको पता है कि क्यों केवल कदली वृक्ष को ही मां नंदा सुनंदा के मूर्ति निर्माण के लिए चुना जाता है ? क्यों केले के पेड़ का इस पावन पर्व में इतना खास महत्व होता है? पहाड़ों की मां नंदा सुनंदा यहां के कण-कण में रची बसी है। जब नंदा देवी का मेला आता है तो सारा पहाड़ नंदामयी चादर ओढ़ लेता है। पंचमी के दिन गणेश पूजा के साथ इस मेले की शुरुआत होती है। इस दिन सबसे पहले जागर लगाकर मां नंदा सुनंदा का आह्वान किया जाता है। फिर एक दल ढोल-नगाड़ों की धुन पर नाचते-गाते मां नंदा और सुनंदा की प्रतिमाएं बनाने के लिए कदली यानी केले का पेड़ लाने निकल पड़ता है। मां की मूर्ति निर्माण के लिए पेड़ चुनने की प्रक्रिया काफी रहस्यमयी होती है। सबसे पहले रात्री को इन केले के पेड़ों की पूजा की जाती है। फिर सुबह मुठ्ठी भर चावल के दाने पेड़ पर फेंके जाते हैं, और जो पेड़ पहले हिलता है उससे मां नंदा की प्रतिमा बनती है। जो पेड़ बाद में हिलता है उससे मां सुनंदा की मूर्ति बनाई जाती है।
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