सत्ता संघर्ष के इतिहास को बखूबी से बयां करता है ।

‘दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र’ की ओर से आयोजित पांच दिवसीय ‘ग्रीष्म कला उत्सव’ का चौथा दिन साहित्यिक विमर्श के नाम रहा है। सांध्यकालीन सत्र में प्रतिष्ठित उपन्यासकार डा० हरिसुमन बिष्ट के उपन्यास ‘बत्तीस राग गाओ मोला’ पर सुप्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी की अध्यक्षता में वृहद विमर्श हुआ है। पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि डा० सुमन ने उपन्यास को बहुत सुंदर और अच्छी भाषा में लिखा है। कहा की यह पहला उपन्यास है जो सिर्फ व सिर्फ दो चित्रकारों के संवाद से आगे बढ़ा है। जो दुनियादारी से वाकिफ करवा रहा है और ऐतिहासिक संघर्षों को उजागर कर रहा है। यह उपन्यास कहता है कि तत्काल रंग नही थे तो उन्होंने प्रकृति से ही रंग पैदा किया है। इसलिए भी उपन्यास ऐतिहासिक दस्तावेजों को प्रमाणित करता है।

बीज वक्तव्य को प्रस्तुत करते हुए प्रसिद्ध कहानीकार डा० शैलेय ने कहा कि इस उपन्यास में चित्र और चरित्र को साहित्य शिल्प से बेहतरीन ढंग से बुना गया है। दरअसल यह उपन्यास नही है बल्कि एक जीवंत इतिहास भी है।

समलोचक डा० धीरेंद्र नाथ तिवारी ने कहा कि यह कहानी भर नही है यह एक संघर्ष के इतिहास को बयां करता है। यह उपन्यास गोरखो की दरंदगी को एक कथा के रूप में बता रहा है।

 

ख्यात कथाकार नवीन नैथानी ने कहा कि यह उपन्यास 1804 के कालखंड को याद दिलाता है। यह उपन्यास उन दिनों के सत्ता संघर्ष को पात्रों के माध्यम से दर्शाता है। उपन्यास की हर कहानी में प्रेम की भी असीम किस्से छुपे हुए है।

 

सेवानिवृत उच्च शिक्षा डा० सविता मोहन ने कहा कि उपन्यास में सांप और कौवे को भी पात्र बनाया गया है। इसलिए यह उपन्यास अपने आप में ही पूर्ण है। उपन्यास में खास यह भी है कि स्थानीय शब्दो को उचित स्थान दिया गया है। वरिष्ठ रंगकर्मी डा० सुवर्ण रावत ने कहा कि हरिसुमन बिष्ट के साहित्य में मनुष्य ही नही बल्कि धरती के सभी जीव जंतु आदि पर्यावरण को बुना गया है। इसीलिए यह कहा गया कि बत्तीस राग गाओ मौला। अर्थात इस तरह उनका लेखन सम्पूर्ण समाज को पाठक बनने के लिए उत्साहित करता है।

 

वक्ताओं ने कहा कि ‘बत्तीस राग गाओ मोला’ उपन्यास को लेखक हरिसुमन बिष्ट ने हिंदी साहित्य में लीक से हटकर लिखा है। अतः एक बेहतरीन उपन्यास है। यह उपन्यास अठारहवीं सदी के महान चित्रकार, गढ़वाल चित्र शैली के जनक कवि और गढ़ राज्य के मुद्राधिपति “मोला राम” के जीवन के एक विशेष कालखंड की एक ऐसी अवधि पर प्रकाश डालता है, जब दो भाई महराज प्रद्युम्न्न शाह और कुंवर पराक्रम शाह के बीच खूनी संघर्ष चल रहा था।

जिसका नाजायज फायदा तत्कालीन गोरखा सैनिको ने लिया। इस तरह कुमाऊँ के बाद गढ़ राज्य भी गोरखाओं के अधीन हो जाता है। उपन्यास तत्कालीन इतिहास को बयां करने के साथ उस समय के सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और दोनों राज्यों की बदहाल आर्थिक स्थिति का भयावह चित्र खींचता है। बावजूद इसके लेखक ने इस उपन्यास को ‘मोला राम का अधूरा किस्सा’ कहा है। उपन्यास ‘बत्तीस राग गाओ मोला’ के सन्दर्भ में हरिसुमन बिष्ट ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह एक इतिहास नहीं अपितु पूर्ण रूप से उनका एक उपन्यास है।

 

उन्होंने कहा कि यह उपन्यास सत्ता के संघर्षों और उन संघर्षों के बीच उपजे पारिवारिक कलह, गोरखा सैनिकों के आतंक व लूट के सामानांतर शौकीन मिजाज के मोला राम के कवि और चित्रकार के चरित्र पर लिखने की कोशिश की गई है।

कार्यक्रम में दून पुस्तकालय के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने सभी का अभिवादन किया। जबकि कार्यक्रम का सफल संचालन आकाशवाणी केंद्र की उद्घोषिका भारती आनंद अनंता ने किया है। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार मुकेश नौटियाल, डा० नंदकिशोर हटवाल, लेखक एवम रंगकर्मी प्रेम पंचोली, समदर्शी बड़थ्वाल, अरुण कुमार असफल, सुन्दर सिंह बिष्ट, कल्पना बहुगुणा सहित देहरादून के अनेक साहित्यकार, बुद्धजीवी, पत्रकार, साहित्य प्रेमी और पुस्तकालय के पाठकगण उपस्थित रहे है।

 

हरिसुमन बिष्ट हिंदी साहित्य में एक प्रतिष्ठित उपन्यासकार, कथाकार के रूप में जाने जाते हैं. उनके अब तक आठ उपन्यास, आठ कहानी संग्रह, तीन यात्रावृतांत और कई नाटक प्रकाशित हुए हैं। वे कई फिल्मों की पटकथा, संवाद लिख चुके हैं। उनके उपन्यासों और कहानियों का अंग्रेजी सहित अन्य भारतीय भाषाओँ में भी अनुवाद हो चुका है। डाॅ. बिष्ट हिंदी पाठकों में जितने चर्चित हैं उतने ही दूसरी भाषाओं में भी पढ़े जाते हैं।

उनकी रचनाओं का देश भर में मंचन हुआ है। पहाड़ के जीवन को उन्होंने अपने उपन्यासों और कहानियों की पृष्ठभूमि में प्रमाणिकता के साथ रखा है। ‘आसमान झुक रहा है’, ‘आछरी माछरी’, ‘होना पहाड़’ और ‘अपने अरण्य की ओर’ उपन्यास उत्तराखंड के जन जीवन को लेकर हैं। दूसरी ओर ‘बसेरा’ भारतीय जीवन में भू मंडलीकरण के बाद आये सामाजिक बदलाव का जीता जागता उदाहरण है, जिसे निठारी कांड का वीभत्स रूप में देख सकते हैं।

भीतर कई एकांत’ भी इसी भू – मंडलीकरण से उपजी विकट परिस्थियों में एक वृद्ध की मनोदशा का चित्र खींचता है जो देश की आजादी के लिए संघर्ष का गवाह भी है। हरिसुमन बिष्ट को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। अपनी घुमक्कड़ वृति के लिए लेखक खूब जाने जाते हैं। साहित्य के क्षेत्र में श्री सुमन को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हो चुके है।

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Author: uttarakhandtime