पेयजल निगम में विवादों में सेवाएं समाप्त करने का फैसला समिति सदस्य ने स्वीकारी गलती ।

पेयजल निगम के चार अधिशासी अभियंताओं की नियुक्ति पर विवाद है। इन अभियंताओं की नियुक्ति 19 साल बाद बच्चनाद पूरे नहीं हुई है। इनकी  प्रक्रिया पर विवाद उस समय बढ़ा था जब उन्होंने दूसरे राज्य के निवासी होने के बावजूद उत्तराखंड में आरक्षित पदों पर नियुक्ति प्राप्त की थी। इस परिस्थिति में, कार्मिक विभाग ने भी विवाद में निर्णय लेने के लिए विभाग से दिशा निर्देश मांगा था। विभाग ने रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि महिला अभियंताओं का चयन 2005 और 2007 में हुआ था, जबकि विज्ञप्ति में महिलाओं के लिए आरक्षण का उल्लेख नहीं था। इसके बावजूद, उन्हें आरक्षित पदों पर नियुक्ति मिली थी।

कार्मिक विभाग ने उस समय उल्लेख किया कि अविधिक कार्य नहीं हो सकता, लेकिन इस मामले में उन्होंने कार्रवाई की सिफारिश की है। अब इस मामले में सार्वजनिक निगम के निर्णय और विभागीय प्रक्रियाओं के बीच के विवाद पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि विभागीय नियम और विधियों का पालन हो और समाज के लिए न्याय और विश्वासनीयता बनी रहे। 2022 में पेयजल निगम के मुख्य महाप्रबंधक सुभाष चंद्र ने जांच में नियुक्ति को सही ठहराते हुए चयन समिति की गलती मानकर दंड न देने की सिफारिश की थी।

चयन समिति के एक सदस्य ने नियुक्ति पर अपनी गलती स्वीकार की। बावजूद इसके चयन समिति पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। दरअसल, पेयजल निगम में अधिशासी अभियंताओं ने दूसरे राज्य के निवासी होने के बावजूद उत्तराखंड में आरक्षित पदों पर नियुक्ति पा ली थी। इसकी शिकायत होने के बाद 2022 में मुख्य अभियंता सुभाष चंद्र ने जांच की थी। जांच में उन्होंने स्पष्ट किया था कि अभियंताओं ने नियुक्ति के दौरान प्रमाणपत्र संबंधी कोई भी तथ्य नहीं छिपाया। सभी प्रमाण पत्र होने के बावजूद चयन समिति ने ये निर्णय किस आधार पर लिया, पता नहीं चल पाया। उन्होंने कहा था कि चूंकि विभाग में उन्होंने कोई भी भ्रामक, असत्य अभिलेख या प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया था, इसलिए आरक्षण का लाभ लेने के लिए कोई छल-कपट प्रतीत नहीं होता। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा था ।

इस आधार पर इन अभियंताओं को सीधे दोषी ठहराना व दंड देना न्यायोचित नहीं होगा। पेयजल निगम के प्रबंध निदेशक रणवीर सिंह चौहान ने सेवा समाप्ति का जो आदेश जारी किया है, उसमें भी स्पष्ट कहा गया है कि नियुक्ति करने वाली समिति को नोटिस जारी किया गया था लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया। एक सदस्य ने जवाब दिया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि उस वक्त उन्हें शासन के आदेशों का संज्ञान नहीं था। इस वजह से त्रुटिवश नियुक्ति की संस्तुति दी गई। इस मामले में पेयजल निगम ने कार्मिक विभाग से दिशा निर्देश मांगे थे। कार्मिक विभाग ने भी 2023 में भेजे गए जवाब में लिखा है  चयन समिति के सदस्य भले ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं लेकिन उन्होंने भर्ती प्रक्रिया को दूषित किया है। ऐसे में अभियंताओं के साथ ही चयन समिति से भी जवाब लेते हुए कार्रवाई की जानी चाहिए।

कार्मिक विभाग ने यह भी माना था कि भले ही कितना भी समय व्यतीत हो जाए, अविधिक काम विधिक नहीं हो सकता। मामले में पेयजल निगम के एमडी रणवीर सिंह चौहान से जब सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि नियुक्ति करने वाली समिति को नोटिस दिए गए थे, जिनमें से केवल एक का जवाब आया है। उन्होंने फिलहाल किसी तरह की कार्रवाई से इनकार किया। 2005 में चार महिला इंजीनियर मृदुला सिंह, मीशा सिंह, नमिता त्रिपाठी और पल्लवी कुमारी का चयन भी महिला आरक्षण संवर्ग में हुआ था।

कार्मिक विभाग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि 2005 और 2007 में सहायक अभियंताओं के चयन के लिए विज्ञप्ति में महिला अभ्यर्थियों के लिए यह कहीं भी उल्लेखित नहीं था कि महिलाओं के लिए क्षैतिज आरक्षण मात्र उत्तराखंड राज्य की महिलाओं के लिए ही निर्धारित किया गया है। यह प्रावधान थे कि यदि कोई महिला किसी राज्याधीन लोक सेवा और पद पर मेरिट के आधार पर चयनित होती है तो उसकी गणना उस पद पर महिलाओं के लिए आरक्षित रिक्ति के प्रति की जाएगी। इसी आधार पर इन महिला अभियंताओं को राहत मिल गई है।

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Author: uttarakhandtime