नई पीठ में न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह शामिल हैं। दो न्यायाधीशों की डिवीजन पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति नागरलना शामिल थे, ने इस मामले को संबंधित उच्च न्यायालय की अधिकारिता पर विचार करने के लिए संदर्भित किया था। डिवीजन पीठ के आदेश में कहा गया था कि यह मामला देश के बहुत से कर्मचारियों को प्रभावित करता है और इसका सार्वजनिक महत्व है। इसमें रजिस्ट्री को निर्देशित किया गया कि वह इस मामले को उचित आदेश के लिए जल्द से जल्द भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करे ताकि उपरोक्त प्रकरण का शीघ्र समाधान हो सके। डिवीजन पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से दायर अपील पर अप्रैल 2022 में अपना निर्णय सुरक्षित रखा था और 11 महीने बाद मार्च 2023 में अंतिम निर्णय सुनाया था।
जनवरी 2023 के ऐसे ही एक मामले में एक फैसले के कारण उत्पन्न हुआ था जिसमें पश्चिम बंगाल से संबंधित एक प्रकरण में आदेश दिया गया था कि कैट की प्रिंसिपल बेंच नई दिल्ली के आदेश को केवल दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष ही चुनौती दी जा सकती थी और मामले से संबंधित प्रदेश के कोलकाता उच्च न्यायालय में नहीं। इधर उत्तराखंड में चतुर्वेदी के मामले में अक्टूबर, 2021 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार ने एक विशेष अनुमति याचिका दायर की थी जिसमें दिसंबर, 2020 में आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के मामले की सुनवाई स्थानांतरित करने के संबंध में कैट के अध्यक्ष के आदेश को निरस्त कर दिया गया था।