“बूढ़ दादी” रेस्टोरेंट आजकल देहरादून में खूब चर्चाओं में हैं। जिसे दीपिका डोभाल और उनके पति कपिल डोभाल मिलकर चला रहे हैं। “बूढ़ दादी” रेस्टोरेंट के पीछे की कहानी आज हम आपको बताने जा रहे हैं। और कैसे दीपिका और कपिल ने संघर्ष कर इस रेस्टोरेंट की ओपनिंग की।
हर राज्य की अपनी अपनी स्पेशल रेसिपी होती है। उत्तराखंड की भी है। भले लंबे समय तक उत्तराखंड के पहाड़ी व्यंजन बाजार नहीं पहुंच पाए, पर इन व्यंजनों ने अपनी एक महत्ता हमेशा बनाकर रखी।और इसी महत्ता को स्वरोजगार से जोड़ा है दीपिका डोभाल और कपिल डोभाल ने। वैसे जिन उत्पादों से यह व्यंजन बनते है, वे सभी उत्पाद बिखरे हुए है। क्योंकि उत्तराखंड में खेती किसानी चकबंदी के रूप नहीं होती है। बिखरी जोत के कारण भी यह उत्पाद बाजार में नहीं पहुंच पाए है। इन्हीं के लिए कपिल डोभाल ने चकबंदी आंदोलन में बढ़चढकर हिस्सा लिया। इसका प्रतिफल यह हुआ कि साल 2010 में उत्तराखंड सरकार ने चकबंदी कानून बनाया और पृथक से एक विभाग की स्थापना कर दी। एक ओर कपिल और दीपिका के सामने अब रोजगार का संकट बढ़ता गया। परिवार के लोग भी कपिल से दूरी बनाने लगे। मगर दीपिका ने उस समय सभी संकटों को संभालने का जिम्मा लिया और कपिल के साथ मिलकर पहाड़ी उत्पादों द्वारा तैयार व्यंजनों को बाजार में उतारा। फिर पहाड़ी व्यंजन बनने लग गए। लेकिन फिर ग्राहकों को स्टॉल तक लेकर आना और उन्हें इन व्यंजनों का स्वाद चखाना, दीपिका के सामने एक बड़ी समस्या हो गया।
इस कार्य में उन्होंने चकबंदी आंदोलन का सहयोग लिया। हर बैठक, हर अभियान में इन्होंने पहाड़ी व्यंजन को खाने के लिए लोगो को प्रेरित किया। साथ साथ यह भी कहा कि यदि पहाड़ी उत्पाद बाजार में बिकने आरंभ हो जाएंगे तो लोग खेती किसानी से जुड़कर स्वयं चकबंदी कर लेंगे। यानी चकबंदी का यह एक बड़ा हिस्सा था जिसे जमीन पर उतारना था, जो दीपिका की कड़ी मेहनत से सफल हो पाया। आज देहरादून और देश के कोने कोने में दीपिका द्वारा संचालित “बूढ़ दादी” रेस्टोरेंट की खास पहचान बन चुकी है।
वर्तमान में “बूढ़ दादी” रेस्टोरेंट में पहाड़ी उत्पादों से तैयार लगभग 47 प्रकार के व्यंजन बनाए जाते है। जो सांय ढलने तक ही ग्राहकों की मांग पर समाप्त हो जाते है। “बूढ़दादी” का एक खास प्रकार का ब्रांड है “बारहनाजा”। जिसकी मांग की पूर्ति दीपिका नहीं कर पा रही है। दीपिका कहती है कि उनके द्वारा बनाए जाने वाले “ढिंढका” व्यंजन भी सबसे अधिक पसन्द किया जा रहा है।
वे कहती है कि “बारहनाजा” एक प्रकार से ड्राई व्यंजन है। यानी कह सकते है पहाड़ी नमकीन, जिसमें बारह प्रकार के मोटे अनाज मिले होते है और भी बहुत कुछ। “बूढ़दादी” रेस्टोरेंट संचालित करने की वजह से वे उन्हीं किसानों से पहाड़ी उत्पाद खरीदते है जिन्हें वे वर्षों पहले चकबंदी के लिए प्रेरित करते थे। अब उनका और किसानों के आंदोलन का वैचारिक संबंध ही नहीं, बल्कि व्यापार का रिश्ता बन गया है। जिस कारण किसानों के हाथों सीधा आर्थिक संसाधन प्राप्त हो रहा है। यह कार्य वे पहाड़ी गांवों में गठित महिला “समूहों” के साथ मिलकर कर रहे है।
2008 में चकबंदी आंदोलन से जुड़कर उनको ऐसा लग रहा था कि वे इस आंदोलन में सफल हो पाएंगे कि नहीं। फिलवक्त 12 साल बाद जब पहाड़ी उत्पादों से तैयार व्यंजनों के लिए “बूढदादी” नाम का एक स्टाल खोला तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। मगर पांच साल के संघर्ष ने यह जता दिया कि मेहनत कभी फिजूल नहीं जाती। आज “बूढ़दादी” रेस्टोरेंट की एक विशेष पहचान है। यही वजह है कि अब तक वे सात लोगों को नियमित रोजगार से जोड़ चुके है। यदि स्वरोजगार की बात करेंगे तो पहाड़ी व्यंजनों को तैयार करने से पूर्व पहाड़ी उत्पाद का होना आवश्यक है, इसलिए वे पहाड़ के अलग अलग गांवों से लगभग 100 किसान परिवारों से पहाड़ी उत्पाद नियमित खरीदते है।
संघर्ष की इस कहानी में कपिल डोभाल कहते हैं कि 2008 से चकबंदी के आंदोलन में कूद पड़ा था। पर जब 2015 में दीपिका के साथ शादी के बंधन में बंधा तो अब कुछ करने की चिंता हुई। वे आगे बताते हैं कि 2016 में जब उन्होंने धाद संस्था के एक कार्यक्रम में बुरांस, माल्टा के जूस का स्टॉल लगाया तो उस दिन 1500 रुपए की पहली कमाई हुई। इस पर दीपिका ने उन्हें सुझाया कि वे आंदोलन को सहयोग दें और दीपिका पहाड़ी उत्पादों के व्यंजन को बाजार का रूप देगी। 2016 से लेकर 2021 तक उन्हें ग्राहकों तक पहुंच बनाने में कई प्रकार की समस्याओं का सामना किया। पर वे पीछे नहीं हटे और आज पहाड़ी व्यंजनों की उनके पास इतनी मांग है कि जिसकी वे पूर्ति नहीं कर पा रहे है।
आज की दीपिका और कपिल डोभाल की संघर्ष की कहानी आपको कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएं, और इसे ही कई व्यक्तित्व की कहानी व बाकी की तमाम अपडेटस के लिए बने रहे उत्तराखंड टाइम पर धन्यवाद।
