जिसमें हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे भूमि पर अतिक्रमण के मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बात की गई है। इसमें लोगों की उम्मीद है कि रेलवे और सरकार पहले उनका पुनर्वास करेंगे, उनकी भूमि का चिह्नीकरण करेंगे, और विस्थापन की सहायता करेंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का स्वागत किया गया है और लोगों ने उम्मीद जताई है कि इससे विकास और मानवीय दृष्टिकोण दोनों को संतुष्टि मिलेगी। बनभूलपुरा में रेलवे भूमि पर अतिक्रमण के मामले में सुप्रीम कोर्ट के लोगों के पुनर्वास की योजना बनाने संबंधी आदेश की सूचना मिलते ही वहां रह रहे लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा। इस आदेश के बाद लोगों को उम्मीद है कि पक्के मकानों से हटाने से पहले सरकार उनका पुनर्वास करेगी।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर करने वालों से लेकर आम लोगों ने भी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को जनहितकारी बताया है। लोगों का कहना है कि रेलवे और प्रशासन ने तो उनकी सुनी नहीं। सुप्रीम कोर्ट से उन्हें न्याय की उम्मीद थी। बुधवार को कोर्ट ने उन्हें बड़ी राहत दी है। हम विकास विरोधी नहीं हैं लेकिन हम चाहते थे कि रेलवे पहले अपनी जमीन बताए। अपनी जमीन चिह्नित करें ताकि जो जमीन रेलवे की नहीं है उस पर काबिज लोगों की परेशानी कम हो। रेलवे अपने विस्तार का प्लान और जद में आ रहे लोगों के पुनर्वास की योजना बताए। सुप्रीम कोर्ट उस दिशा में जा रही है।मैंने वर्ष 2008 में भूमि फ्रीहोल्ड के लिए आवेदन किया और 2015 में फ्रीहोल्ड हो गया। अब मैं कानूनी रूप से भूमि का मालिक हूं।
इस जमीन पर भी रेलवे का नोटिस आ गया। हमारी मांग थी कि रेलवे की वास्तविक भूमि पता चले। सुप्रीम कोर्ट ने भी यही आदेश दिया है। रेलवे और प्रदेश सरकार को भी सुप्रीम कोर्ट की तरह मानवीय दृष्टिकोण रखते हुए गरीब जनता के हित में निर्णय लेने चाहिए। मात्र एक रिटर्निंग वॉल बनने से ही सारी समस्या का हल निकल सकता है। इसके बनने से न तो रेलवे स्टेशन को कोई खतरा होगा और न ही किसी के आशियाने को उजाड़ने की ज़रूरत पड़ेगी। मैं इंदिरानगर में रहता हूं। मैंने नगर निगम से आरटीआई में जानकारी मांगी थी कि मेरा मकान किस भूमि पर है। तब नगर निगम ने कहा कि नजूल भूमि है और स्वामित्व राज्य सरकार का है। फिर मैं रेलवे अतिक्रमण से बेफिक्र था लेकिन अचानक रेलवे ने नोटिस थमा दिया। हमारा मानना है।
कि रेलवे भूमि चिह्नित करे तभी सच सामने आएगा।रेलवे के पास कोई ठोस सबूत नहीं हैं। रेलवे जबरन अपनी जमीन बता रहा है और कोर्ट को गुमराह कर रहा है। जीत सच की होगी और बनभूलपुरा के लोग हक की बात पर अपनी पैरवी कर रहे हैं। रेलवे का सीमाकंन ही गलत है। हम लोग आखिरी दम तक लड़ाई लड़ेंगे।रेलवे और सरकार गरीबों को उजाड़ना चाहती थी लेकिन इंदिरनगर की आम जनता को सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिलने का पूरा भरोसा था। सुप्रीम कोर्ट के तीनों जजों का आभार।बनभूलपुरा की जनता को न्यायालय पर भरोसा था। आज न्यायालय ने जो कहा उससे आम जनता बहुत खुश है। जब सरकार और रेलवे प्रशासन ने हमारी बात नहीं सुनी तब सुप्रीम कोर्ट पर ही भरोसा था।सर्वोच्च अदालत किसी को बेघर नहीं होने देगी। वकील हमारे पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में खड़े होकर हमारी आवाज बने, उन्हें धन्यवाद देते हैं।
लोगों ने मेहनत करके एक-एक पैसा जोड़कर अपने मकान बनाए। जब से रेलवे ने नोटिस भेजे हैं और नजूल की भूमि को अपनी भूमि बताया, तब से यहां के लोगों की नींद उड़ गई थी। सभी की दुआएं आज काम आई। न्यायालय की सुनवाई से सभी आज चैन की सांस ले रहे हैं।लोगों ने मेहनत करके एक-एक पैसा जोड़कर अपने मकान बनाए। जब से रेलवे ने नोटिस भेजे हैं और नजूल की भूमि को अपनी भूमि बताया, तब से यहां के लोगों की नींद उड़ गई थी। सभी की दुआएं आज काम आई। न्यायालय की सुनवाई से सभी आज चैन की सांस ले रहे हैं।रेलवे प्रशासन को हल्द्वानी में जमीन की खासी जरूरत है क्योंकि जमीन के अभाव में रेलवे की योजनाएं धरातल पर नहीं उतर पा रही हैं। रेलवे न केवल हल्द्वानी से वंदे भारत ट्रेन चलाना चाहता है बल्कि उसका प्रयास है कि लालकुआं से चलने वाली अधिकतर पैसेंजर ट्रेनें हल्द्वानी से संचालित हों। रेलवे की नजर भविष्य में गौलापार के ग्रेटर गौलापार के रूप में विकसित होने पर भी है।
अधिकारियों को उम्मीद है कि गौलापार में आधारभूत सुविधाएं जुटने के बाद उसे हल्द्वानी स्टेशन से कहीं अधिक यात्री मिलेंगे। इससे रेलवे का राजस्व बढ़ेगा। यही नहीं रेल विभाग हल्द्वानी स्टेशन का विस्तार उत्तराखंड के सुंदर और सुविधाजनक स्टेशन के रूप में भी करना चाहता है।बनभूलपुरा मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाले आरटीआई कार्यकर्ता रविशंकर जोशी का कहना है कि कांग्रेस ने अपने राजनीतिक स्वार्थ और वोट बैंक के लिए रेलवे की भूमि पर इस अतिक्रमण को संरक्षित किया है जिसने आज पूरे कुमाऊं के विकास को रोक दिया है। उन्होंने कहा कि इस अतिक्रमण के कारण रेलवे की कई परियोजनाएं अटक गई हैं। कई ट्रेनें नहीं चल पा रही हैं। अतिक्रमण को हटाया जाना सामरिक दृष्टि से भी जरूरी है ताकि सीमा पर किसी भी विवाद की स्थिति में सेना को रेल नेटवर्क के जरिये तत्काल रसद सहायता उपलब्ध कराई जा सके।
कि वह पिछले एक दशक से अधिक समय से इस अतिक्रमण को हटाने के लिए संघर्षरत हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि अब जल्द ही हल्द्वानी में रेलवे की भूमि से अतिक्रमणकारियों को हटाया जा सकेगा। कहा कि अतिक्रमण हटने के बाद हल्द्वानी ही नहीं बल्कि पूरे कुमाऊं का विकास होगा। अतिक्रमणकारियों के विस्थापन के विषय पर राज्य और केंद्र सरकार को विचार करना है। बीते चार दशक से रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण है। वर्तमान में इस भूमि पर 4365 परिवार निवास कर रहे हैं। गौलापार निवासी आरटीआई कार्यकर्ता रविशंकर जोशी ने हाईकोर्ट में अतिक्रमण हटाने को लेकर जनहित याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने रेलवे की भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। बाद में कुछ लोग हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने मानवीय दृष्टिकोण और विकास दोनों को देखा है। हम कोर्ट के आदेशों का स्वागत करते हैं। कोर्ट ने रेलवे, भारत सरकार और राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि रेलवे के विस्तार के लिए कितनी जगह चाहिए। इसमें कितने लोग विस्थापित होंगे, उसका चिह्नीकरण करें। विस्थापन को रोडमैप भी मांगा है।