जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी भाजपा के उम्मीदवारों को जीताने के लिए देशभर में जनता से समर्थन जुटाने में लगे है, उसके उलट उन्ही की पार्टी के मौजूदा सांसद अपनी निधि को इस पंचवर्षीय योजना में खर्च तक नही कर पाए है। इस चुनाव में भाजपा के अधिकांश उम्मीदवार दोहराए गए है और वे जनता को जबाव नहीं दे पा रहे है।
यहां हम बात कर रहे है उत्तराखंड के पांचों सांसदों की जो अपनी निधि का पूरा बजट खर्च नही कर पाए है। वर्ष 2014 और 2019 में उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों में भाजपा के प्रत्याशी जीते थे। इसी तरह से 2019 में लोकसभा के पांचों सांसदों को जो सांसद निधि मिली उसको खर्च करने में यह सांसद फिसड्डी ही साबित हुए है। बताया गया कि अल्मोड़ा के सांसद अजय टम्टा ने सांसद निधि का सर्वाधिक बजट खर्च किया है जो कि निधि से 50 प्रतिशत का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाया है। अर्थात अजय टम्टा ने अपनी सांसद निधि के कुल 17 करोड़ में से मात्र 8 करोड़ 52 लाख रुपय ही खर्च कर पाए है, शेष निधि लैप्स कर दी गई है।
यहां सबसे खराब परफोर्मेंस पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की बताई जाती है। क्योंकि वह तो मात्र 4 करोड़ ही खर्च कर पाए है। यही वजह रही है कि भाजपा ने इस बार उनका टिकट ही काट लिया, और उन्हें “पन्ना प्रमुख” की पदवी दे दी गई है।
टिहरी लोक सभा से चौथी बार चुनाव मैदान में उतरी महारानी राज लक्ष्मी शाह को क्षेत्र में लोग “लापता” सांसद के नाम से जानते है। इनका हाल भी प्रधानमंत्री मोदी के भरोसे है। इन्होंने ने भी सांसद निधि के 17 करोड़ में से मात्र 8 करोड़ 15 लाख रुपय ही खर्च पाये है।
इधर रक्षा राज्य मंत्री रहे अजय भट्ट सांसद निधि को खर्च करने में फिसड्डी साबित हुए। वे भी पुनः चुनाव मैदान में है। वह इस वक्त अपने नाम पर चुनाव में वोट नहीं मांग रहे है, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर वोट मांग रहे है। नैनीताल – उधमसिंह नगर से सांसद अजय भट्ट ने भी 17 करोड़ की निधि से कुल 6 करोड़ 99 लाख रुपए ही खर्च कर पाए है। जबकि भारी भरकम मानव संसाधन विकास मंत्रालय को कुछ दिन संभाले निशंक इस बार अपना टिकट ही गंवा बैठे है। हरिद्वार से सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने भी
सांसद निधि के 17 करोड़ में से मात्र 5 करोड़ 34 लाख रुपए ही खर्च कर पाए है।
दरअसल सांसद निधि से लोगो को विकास कार्यों बाबत बड़ी अपेक्षाएं रहती है। मगर आंकड़ों की बानगी बता रही है कि उत्तराखंड के इन सांसदों का अपनी जनता से ही इस चुनाव में मिलना हुआ। पांच वर्ष तक यह सांसद कहीं गुमनामी में घूमते रहे है। परिणामस्वरूप इसके यह सांसद अपनी निधि का 50 फीसदी हिस्सा भी खर्च नहीं कर पाए है। यही नहीं इन माननियो ने अपने कार्यकाल के दौरान कभी भी संसद के अंदर अपने क्षेत्र की समस्या जैसे रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य के सवाल तक नही उठाए है और पुनः जनता के सामने वोट मांगने खड़े हो गए है।
कुलमिलाकर यदि आंकड़ों और सांसदों की गतिविधि पर नजर दौड़ाएं तो इस चुनाव में उन्हें जनता की खानी पड़ेगी, जो समय के गर्त में है।